स्मार्टवाच की जगह लेगी यह टैक्नोलॉजी, स्मार्टफोन को भी कर सकती है रिप्लेस
4/17/2016 10:53:48 AM
जालंधर : सोचिए कैसा रहेगा अगर हाथ पर पहनने वाली घड़ी जैसा कोई डिवाइस त्वचा से भी पतला हो और यह आपको समय के अलावा तापमान और महत्वपूर्ण संकेत के बारे में भी जानकारी दे तथा आने वाले मैसेज पढऩे के लिए सिर्फ दूसरे हाथ को नीचे करना पड़े, तो कैसा रहेगा। आप भी सोच रहे होंगे कि यह एक क्रेजी फ्यूचरिस्टिक आइडिया है लेकिन यह सिर्फ आइडिया ही नहीं है यूनिवर्सिटी ऑफ टोक्यो इस तरह के डिजाइन वाले डिवाइसिस पर काम कर रही है।
शोधकर्ताओं ने पतली फिल्म वाले इलैक्ट्रानिक सैंसर्स को बनाया है जिसे ई-स्किन का नाम दिया है। यह ई-स्किन पारदर्शी, बेहद पतली टेप के सहारे टुकड़ों के रूप में त्वचा पर चिपक जाएगी जिसके ऊपर नम्बर और शब्द अलग-अलग रंगों में दिखाई देंगे। इसी के साथ इस टैक्नोलॉजी की मदद से पल्स और खून में ऑक्सीजन की मात्रा को भी जांचा जा सकेगा। उल्लेखनीय है कि ऑक्सीजन की परिपूर्णता जिसे एसपीओ2 के नाम से भी जानते हैं, को वर्तमान में कुछ स्मार्टफोन्स के जरिए मापा जा सकता है। खून में ऑक्सीजन की मात्रा कम होना यह दर्शाता है कि शरीर में कोई न कोई गड़बड़ है।
‘साइज में बड़े हैं स्मार्टफोन्स’ :
शोधकत्र्ताओं ने जर्नल साइंस एडवांसिस में इस ई-स्किन के बारे में जानकारी दी है। इस शोध से जुड़े एक शोधकर्त्ता Takao someya ने प्रैस रिलीज में कहा कि हमने ई-स्किन को इसलिए बनाया है क्योंकि हमारे स्मार्टफोन्स साइज में बहुत बड़े हैं।
इन सवालों का नहीं दिया जवाब :
यह टैक्नोलॉजी बन तो गई है लेकिन अभी इसे लैब से हमारे हाथों तक पहुंचते-पहुंचते बहुत समय लग जाएगा। इसके अलावा बहुत से सवाल हैं जिनके बारे में शोधकत्र्ताओं ने इस स्टडी में जानकारी नहीं दी है जैसे इस ई-स्किन से त्वचा सांस ले पाएगी, क्या यह आरामदायक, सुरक्षित और टिकाऊ है।
क्या पल्स और खून में ऑक्सीजन की मात्रा को हर पल मापने की जरूरत है? इलैक्ट्रानिक टेप को त्वचा पर लगाने से कोई नुक्सान तो नहीं होगा? क्या यह टैक्नोलॉजी सच में स्मार्टवाच और स्मार्टफोन्स से बेहतर है ? या फिर यह अजीब है। कुछ भी नया और प्रयोगात्मक करने के रूप में शोधकत्र्ताओं को इस पर बेहद काम करने की जरूरत है। इस बारे में तो कोई नहीं जानता कि ई-स्किन फोन की जगह ले पाएगा या नहीं, लेकिन इसका कांसैप्ट बेहतरीन है। इसके अलावा ई-स्किन टैक्नोलॉजी यह भी बयां करती है कि जिस तकनीक के बारे में हम सोच रहे हैं उसे बनाया जा सकता है।

